Monday, February 6, 2017

मालवा यात्रा : उज्जैन

महाकालेश्वर के दर्शन बहुत ही आराम से हो गये। करीब आधे घंटे में ही बाहर आ गये क्यूं कि शाम तक पूरा शहर घूमना था। शाम की ट्रैन से इंदौर भी निकलना था। मंदिर से निकलते ही भोजन भी किया। मंदिर के गेट के नजदीक ही खूब सारे भोजनालय हैं। 
मालवा की यात्रा के दौरान मैंने महसूस किया कि खाने के साथ नमकीन का बडा महत्व है। शादी पार्टी हो या मृतक भोज, खाने में नमकीन अवश्य चलती है। महाकालेश्वर के सामने एक भोजनालय की सफेद मीठी कढी खायी जो बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट लगी। उसमें बेसन तो था पर कढी सफेद थी। भारत का खानपान जलवायु के हिसाब से बदलता जाता है।ट्रेन से मध्यप्रदेश पार करते ही प्लेटफार्म पर गेहूं की रोटी की जगह जवार की पतली पतली पापड टाईप रोटी आ जाती है और आगे बढ जाओ तो चावल के समौसे और इडली चटनी ही उपलब्ध होगी। साऊथ में केले के पत्ते पर डोसा रखकर उस पर नारियल की सफेद चटनी फैला दी जाती है।

महाकालेश्वर मंदिर के निकट हरसिध्दि मार्ग पर बडे गणेश की भव्य और कलापूर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर परिसर में सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान प्रतिमा के साथ-साथ नवग्रह मंदिर तथा कृष्ण यशोदा आदि की प्रतिमाएं भी विराजित हैं।
भगवान शंकर ने देवी चंडी को हरसिद्धि का नाम दिया था। माता हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की कुल देवी थी।
महाकालेश्वर के सामने ही भोजन करते ही आटो बाले फिरोज भाई को बुला लिया। और हम चल दिये शहर की ओर। सबसे पहले हम पहुंचे काली मां के मंदिर जिसका नाम अक्सर कवि कालीदास जी के संदर्भ में सुनता रहता हूं। गढकालिका देवी का यह मंदिर आज के उज्जैन नगर में प्राचीन अवंतिका नगरी क्षेत्र में है। कालयजी कवि कालिदास गढकालिका देवी के उपासक थे। काली मां के मंदिर में ढोक देने के बाद हम पहुंचे राजा भर्तृहरि की गुफा। इनकी एक गुफा सरिस्का के जंगल में भी है। भर्तृहरि की गुफा ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर का अवशेष है, जिसका उत्तरवर्ती दोर में जीर्णोध्दार होता रहा। उसके बाद मंगलनाथ मंदिर।  कर्क रेखा इसी मंदिर से हो कर जाती है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से लगभग 5 कि. मी. की दुरी पर स्थित है।
भारत एक ऐसा देश है जहा नदियों को माँ का दर्जा दिया गया है। शिप्रा नदी भी उन्ही पवित्र नदियों में से एक है जिसका जल अमृत के सामान माना जाता है।
शिप्रा नदी में भगवान श्री राम ने अपने पिता माहराज दशरथ का पिंड दान किया था। शिप्रा नदी में सायं की आरती का दृश्य अत्यंत शांति प्रदान करने वाला होता है। और अतं में पहुंचे काल भैरव मंदिर जिसके आगे शराब की दुकानों की लाईन लगी पडी थी। मैं तो नहीं चढाई लेकिन साथ के बहुत सारे लोगों को चढाते देखा। काल भैरव शिव का क्रोधित स्वरुप माना जाता है। उज्जैन के भैरव गढ़ नामक क्षेत्र के इस मंदिर में स्थापित काल भैरव की प्रतिमा को मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है और जैसे ही मदिरा का भरा प्याला  काल भैरव के होंठों से लगाया जाता है, देखते ही देखते वह प्याला खाली हो जाता है। काल भैरव का मुंह इतना बडा है कि आधी सी प्लेट अदंर घुस जाती है और सारी शराब अदंर चली जाती है। बस यहीं आकर मेरा दिमाग खराब होता है कि हमने भोले को नशेडी बना कर रख दिया है। पर क्या करें धर्म का मामला है चुप रहना ही ठीक है। लोगों की गालियों से तो चुप्पी ही ठीक है। यह स्थल शिव के उपासकों के कापालिक सम्प्रदाय से संबंधित है। मंदिर के अंदर काल भैरव की प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में राजा भद्रसेन ने कराया था।
मेरे पास समय की कमी थी इसलिये सारे स्थल तो न देख सका लेकिन आप यदि आयें तो कम से कम दो तीन दिन का समय अवश्य निकालें तब ही पूरा उज्जैन अंचल घूम सकेंगे। जानकारी के लिये कुछ स्थानों के नाम शेयर कर रहा हूं। पाताल पानी झरना उज्जैन से 90 कि. मी. दूर स्थित है। उज्जैन आने वाले यात्री इस जगह जा कर यहाँ के शांत वातावरण में अपनी थकान मिटाते है। यह एक अत्यंत सुन्दर प्राकृतिक झरना है। यह इंदौर से 30 कि. मी. दूर है। उज्जैन आये यात्री टैक्सी द्वारा पातालपानी जाते है। यह झरना 300 फ़ीट की ऊंचाई से गिरता है। आसपास की हरयाली और ऊंचाई से गिरता पानी बहुत मनोरम दृश्य बनाता है। गोपाल मंदिर उज्जैन नगर का दूसरा सबसे बडा मंदिर है। यह मंदिर नगर के मध्य व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने सन् 1833 के आसपास कराया था। मंदिर में कृष्ण (गोपाल) प्रतिमा है। मंदिर के चांदी के द्वार यहां का एक अन्य आकर्षण हैं।
उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दाहिने किनारे, जहां नगर स्थित है, पर बने ये घाट स्थानार्थियों के लिये सीढीबध्द हैं। घाटों पर विभिन्न देवी-देवताओं के नये-पुराने मंदिर भी है। क्षिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान देखते ही बनता है, जब लाखों-करोडों श्रध्दालु यहां स्नान करते हैं।

धर्मस्थली उज्जैन के प्रमुख दर्शनीय स्थल।।
महाकाल मन्दिर, मंगलनाथ, कालभैरव, विक्रान्त भैरव, दत्ता अखाड़ा, चौरासी ईश्वर आदि।हरसिध्दि, चौंसठ योगिनी, गढ़कालिका, नगरकोट की रानी, भद्रकाली (चौबीस खंभा), नवदुर्गा (योगमाया), गायत्री मन्दिर आदि।चिंतामणि गणेश, स्थिरमन, मनकामनेश्वर, बड़े गणेश आदि।अवन्ति-पार्श्वनाथ मन्दिर, नमकमण्डी व खाराकुआ स्थित जिनालय एवं उपाश्रय, जयसिंहपुरा का दिगम्बर मन्दिर, हासामपुरा का श्वेताम्बर जिनालय, काँच का मन्दिर दौलतगंज आदि।
ख्वाजा शकेब की मस्जिद, छत्रीचौक स्थित मस्जिद, जामा मस्जिद, बोहरों का रोजा आदि।
चारधाम मन्दिर, रणजीत हनुमान मन्दिर, ऊजड़खेड़ा हनुमान मन्दिर, वल्लभाचार्य की 73 वीं बैठक, चित्रगुप्त व ब्रह्मा मन्दिर-अंकपात आदि
वैश्या टेकरी का स्तूप-स्थल, भर्तृहरि गुफा, पीर-मत्स्येन्द्र की समाधि, रूमी का मकबरा, बिना नींव की मस्जिद, कालियादेह महल व 52 कुण्ड, वेधशाला, कोठी महल, बेगम का मकबरा आदि।


विक्रम विश्वविद्यालय परिसर, श्री सिन्थेटिक्स, कालिदास अकादमी, सिंधिया प्राच्य शोध संस्था संस्थान, विक्रमकीर्ति मन्दिर, विक्रम विश्वविद्यालय पुरातत्तव संग्रहालय, डॉ. वि.श्री. वाकणकर स्मृति जिला पुरातत्तव संग्रहालय, जयसिंहपुरा दिगम्बर जैन संग्रहालय, भारतीय कलाभवन, म.प्र. सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान, श्री कावेरी शोध संस्थान, गंभीर बांध परिसर।

















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