Saturday, February 4, 2017

उज्जैन यात्रा : महाकालेश्वर

घुमक्कडी करना और दोस्त बनाना बचपन से ही मेरी हौवी रही है। पिछले बीस बर्ष से लगातार भारत भ्रमण करते हुये लगभग 80 प्रतिशत भाग घूम चुका हूं। आज भी छुट्टियों का इंतजार रहता है। जैसे ही छुट्टियां मिलीं निकल लिया घुमक्कडी पर। पिछले साल नवंबर में लगातार सात दिन की छुट्टी मिली तो निकल लिया मालवा और पचमढी की तरफ। 
धौलपुर से ग्वालियर, ललितपुर, इंदौर होते हुये पचमढी सतपुडा की पहाडियों की तरफ रूख कर दिया। इस बार मेरे साथ था मेरा नन्हा दोस्त "विकी चौधरी" मेरा बेटा। मैं विकी को लेकर जा रहा था तो उसकी मां बोली,"हे राम! मेरे तो करम फूट गये ! पहले तो आदमी से ही परेशान थे और अब तो औलाद भी पागल हो गयी। हहहह अब क्या करें खुद कहीं जाती नहीं है तो हम अकेले ही निकल पडते हैं। 
मालवा एक्सप्रैस 11:30 PM धौलपुर से पकडी जिसने मुझे सुवह तक उज्जैन पहुंचा दिया। फेसबुक ने मुझे विचारभिन्नता होने के बाबजूद बहुत सारे अच्छे दोस्त दिये हैं। कल का पता नहीं क्या हो तो क्यूं न जी भर के जी लिया जाय। मैं इस आभाषी दुनियां की निश्वार्थ मित्रता को बास्तविक जीवन में लाना चाहता हूं। हो सकता है बहुत सारे लोग मेरे विचारों के कारण मुझे पंसद न करते हों पर मुझे विश्वास है कि एक न एक दिन मैं उन्हें भी अपना बना ही लुगां। समझौता जीवन का दूसरा नाम है जो झुकते नहीं वो टूट जाते हैं। मध्यम मार्ग ही बेहतर है। जीवन के सफर में साथी हों सफर की सफरिगं महसूस नहीं होती।
करीब 27 बर्ष बाद उज्जैन की पवित्र भूमि पर कदम रखने से पहले मैंने इसकी धूल माथे से लगायी। महाकाल की नगरी उज्जैन ही वो नगर है जहां सन्दीपनी आश्रम में श्री कृष्ण बलदाऊ और सुदामा ने शिक्षा पायी। महान कवि कालीदास जी विद्धता को प्राप्त हुये। यही वो नगर है जहां का सिंघासन अपने न्याय के लिये विश्व प्रसिद्द है। महाराज विक्रमादित्य ने ही विक्रम संवत प्रारंभ किया। यहां के राजा भोज तो विश्वविख्यात रहे ही हैं , गंगू तेली ने भी खूब चर्चा पायी है। क्षिप्रा नदी तट पर स्थित इस धार्मिक नगरी में महाकालेश्वर के अलावा कालभैरव , मगंलनाथ , भर्तरहरी गुफायें, महाकाली मंदिर जैसे सैकडों मंदिर हैं। शिक्षा और धर्म की इस पवित्र भूमि को नमन करता हूं।
स्टेशन से बाहर निकला ही था कि पीछे से आवाज सुनी, "भाई जान महाकाल भगवान के दर्शन करा दें आपको ?" एकदम पलट के देखा तो करीब 25 बर्षीय नवयुवक आटोबाला फिरोज कुरैशी मुझे मंदिर ले जाने के लिये आग्रह कर रहा था।
" और आप कहें तो सारे मंदिरों के दर्शन करा देंगे और पूरा धार्मिक इतिहास भी बतायेंगे, किराया मात्र तीन सौ रुपये।"
फिरोज कुरैशी की आत्मीयता व्यावसायिक नहीं थी बस निश्वार्थ इंसानी प्रेम था पर हां उसका कार्य व्यावसायिक था जो इस आत्मीय व्यवहार के बिना भी संभव था। बार बार आटो कौन पकडे इसलिये तीन सौ रुपये कोई ज्यादा न लगे मुझे। पूरे दिन घूमना था। आटो से महाकाल की तरफ रवाना हो लिये। रास्ते में महाकालेश्वर भगवान की लीला एवं पूजा विधि के बारे में ऐसी ऐसी बातें उस मुसलमान ड्राईवर ने मुझे बतायीं जो उन पंडों  को भी न पता होंगी जो मंदिर परिसर में अपनी अपनी दुकान सजा कर बैठे थे। निसंदेह मंदिर बहुत ही भव्य एवं आलीशान है जहां कला की बहुत उत्कृष्ट कारीगरी है तो लाखों लोगों की आस्था का संगम है।
" ये सब हिन्दू धर्म की इतनी गहरी जानकारी तुम्हें कहां से हुयी फिरोज भाई ?" मैंने ड्राइवर से  पूछा ।
" चाहर साब , हमें इस्लाम में मजहब के प्रति गहरी आस्था रखना सिखाया है, जब मैं अपने मजहब के प्रति अटूट आस्था रखता हूं तो क्यूं न और लोगों की आस्था का सम्मान करुं ? सर मैं रोज न केवल टीवी पर "ऊं नम शिवाय देखता हूं बल्कि धार्मिक किताबें भी पढता हूं। ये तो हम भी जानते हैं कि हम सबको पहुंचना तो इक ही जगह है। पंथ अलग हों तो क्या हुआ मंजिल तो एक ही है न ?" फिरोज बोला ।
उज्जैन नगर में घूमते हुये आखों के सामने वो दृश्य घूम गया, बचपन की यादों को याद करते हुये मंद मंद मुस्कुराने लगा, तो औटो चालक फिरोज कुरैशी बोला, " क्या हुआ चाहर साहब किसी की याद आ गयी क्या ?"
हां फिरोज भाई कुछ लडके याद आ गये मुझे ।
जनाब कौन थे वो ? उत्सुकता से फिरोज भाई ने पूछा।
हहहहहहहहहह थे यार 3 Idiot's.
दरअसल पहली बार मैं यहां 1988 में आया था ।कक्षा 8 में था मैं उस समय । मैं अपने बडे भाई Harpal Singh Chahar A.En  साहब के इंजीनियर कालेज हास्टल ( विक्रम विवि ) में कुछ पल ठहरा ही था कि उनके कुछ मनचले साथी मुझसे मजाक में कहने लगे,
"" छोटू तेरी रैंगिग लेनी पडेगी" मैं रैगिगं का अर्थ तक नहीं जानता तो तुरंत हामी भर दी। मुझे क्या पता था कि वो होनहार इंजीनियर मेरी कनपटी सैंक देगा। मैं रोने लगा, तो बोला " अबे एक ही रैपटे में मोंह फाड रहा है ? बिना बात गधे की तरह रैंक रहा है, अरे ये तो कुछ भी नहीं है, हम तो नये नये लौंडों को जलते हुये हीटर की कौईल पर मुतबा देते हैं।"
बस उन्ही पुरानी यादों को याद करते हुये महाकालेश्वर पहुंच गया। कुंभ अगले ही महीने था। तैयारियां जोरों पर थी। पर अभी भीड तो बिल्कुल भी नहीं थी। यह धरती है महाकाल की । उज्जैन अपने मंदिरो के लिए सुप्रसिद्ध है। उज्जैन को उज्जैनी, अवन्ति, अवंतिका भी कहते हैं। जैसे ही यात्री रेल गाडी से उतरते है, चारों ओर महाकाल की जय जयकार सुनाई देती है। उज्जैन घूमने के लिए कम से कम यात्रियों को 2-3 दिन का समय चाहिए। रेलवे स्टेशन से 1.5 कि. मी. की दुरी पर स्थित है यह महाकाल का प्रसिद्ध मंदिर। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, १२ ज्योतिर्लिंगों में से इकलौता ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है। इसी कारण तांत्रिक विधाओं में इसका विशेष महत्व है। यहाँ सुबह की भस्म आरती, भगवान शिव शंकर को उठाने की ऐसी आरती है जिसमे भगवान का श्रृंगार भस्म से किया जाता है। हालांकि मैं उस आरती में शामिल न हो सका लेकिन सुना था कि भस्म आरती में हिस्सा लेने के लिए पुरुषो को धोती तथा महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य होता है। भस्म आरती का दृश्य बहुत मनोरम होता है। इस आरती में शामिल होने के लिए कुछ नियमो का पालन करना अनिवार्य है।
मंदिर प्रांगण में अन्य कई देवी देवताओं के मंदिर भी सुशोभित है। मंदिर के पास रूद्र सागर नामक झील है जिसमे ज्ञान करने का बहुत महत्व बताया जाता है। महाकालेश्वर के मंदिर की तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है जो साल में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन खुलता है।
सम्राट अशोक के पिता बिन्दुसार की राजधानी अवन्तिका में शिप्रा नदी के तट पर बसे मंदिरों में सबसे आकर्षक है भगवान महाकालेश्वर और औंकारेश्वर शिव जी का मंदिर। महाकाल भगवान के दर्शन करनें जांय तो अपना सामान एवं मोबाईल जूते इत्यादि मंदिर के बाहर ही लगी दुकानों या मंदिर के लौकर में जमा करा सकते हैं। अंदर अपना कैमरा मोबाईल ले जाना मना है लेकिन मंदिर समिति द्वारा उपलब्ध फोटोग्राफर मात्र सौ रूपये में 6 फोटो आपको बस पांच मिनट में दे देते हैं। सडक के दोनों ओर फूल पत्ती प्रसाद आदि की सजी दुकानें हैं जिन्हें पार करते ही मंदिर का मार्ग शुरु हो जाता है जो बहुत आकर्षक है। मार्ग में दोनों ओर बैठे तिलकधारी पंडित भी अपने अपने जजमानों के साथ कुछ धार्मिक अनुष्ठान कर रहे होंगे। मंदिर परिसर के अंदर बहुत ही सुन्दर तालाब है जिसके घाट पर पंडे चंदन तिलक लगाने को आपको बुलाते नजर आयेंगे। तीन चार उतार की रपट सीढियां उतने के बाद आप महाकाल की लाईन में लग जाईये । जलाभिषेक करना है तो थोडा पहले ही एक पात्र है जो पाईप के माध्यम से शिवलिगं पर गिरता है। महाकाल के शांतिपूर्ण दर्शन कुंभ के दौरान नहीं हो पायेंगे। उसके लिये ये महीना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। भगवान शिव के दर्शन के बाद यदि आप एकांत में मनन करना चाहते हैं वहीं सामने विशाल वरामदे में बैठ आध्यात्मिक लाभ ले सकते हैं।







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