Monday, January 23, 2017

Amarkantak tour ; भोपाल bhojpur ।।

मप्र / छग टूर पर जाने से पहले मैंने एक मित्र से घुमक्कडी पर साथ चलने के लिये कहा था तो उनका जबाब मिला, " मौये का बाबरे कुत्ता नै खायौ है जो दुनिया भर में डोलत रहूं ? " मैं बस मुस्कुरा भर गया ।
घुमक्कडों के बारे में यदि दुनियां बालो की राय लो तो एक ही शब्द आता है, कि पगला गया है। जबकि मेरा मानना है कि पागल तो वो है जो हर वक्त दिमाग में धन कमाने का कीडा बिठाये रखते हैं। मेरे मित्र मुझे पागल कह रहे थे और मैं मन ही मन उनको ।


मेरे उस मित्र के दो बच्चे हैं और दोनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। पत्नि भी अच्छा वेतन पाती है और स्वंय भी कितुं ज्यादातर समय बस पैसे की जुगाड में ही चला जाता है कि अब आगे क्या खरीदना है। हो सकता है मेरा विचार सही न हो पर मुझे लगता है कि अब हमारी भूख कुछ बढती ही जा रही है और उस भूख ने हमें बहुत सारी दिमागी बीमारियां भी दे रखी हैं। सब कुछ होते हुये भी हम जीवन से सतुंष्ट नहीं हैं। यात्रा से लौटने पर पता चला कि मेरे उस मित्र को दिल का एक हल्का सा दौरा पडा था। अन्य पडौसियों से पूछताछ से सामने आया कि अधिकांश समय नौकरी और घरेलू झंझावातों में ही बिताता है । न किसी के पास उठना बैठना और न कोई मौजमस्ती । जबर्दस्ती की गंभीरता ओढ लेना भी कोई बुद्धिमानी तो नही है न ? बढे हो गये तो क्या ? बचपना बहुत जरूरी है जीवन वरना जिदंगी नीरस होते देर न लगेगी और फिर सुविधाऐं जुटाने हेतु पैसे के लिये भागमभाग क्या इतनी जरूरी है कि जीवन ही छीन ले ? एक आदमी को सुखी रहने के लिये चाहिये क्या ? रोटी कपडा और मकान । बस न? और ज्यादा ही हो तो मोबाईल और गाडी जोड लो बस ? मेरे घर में आज जो कुछ भी है वो सिर्फ घरबाली की बजह से है। मेरा बस चले तो जंगल में एक झोंपडी डाल लूं। सही बताऊं तो मुझे डबल बैड पर नींद तक नहीं आती । मुझे खाट चाहिये या फिर फर्श। और वो भी बिना बिस्तर बाली खाट । खरहरी खाट पर सोता हूं मैं । खाने के नाम पर मुस्किल से दो रोटी खा पाता हूं । कपडे दो चार रखता हूं बाकी स्कूल में बांट आता हूं। इस यात्रा में बहुत सारे मित्र मिले। दुख दर्द भी शेयर किये तो खुशियां भी। परिवार से भी मिलाया। अधिकांश मित्र बहुत ही अमीर हैं। बहुत सारी गाडियां और महल जैसे घर। लेकिन कहीं न कहीं कोई दर्द लेकर बैठे हैं दिल में।



घुमक्कडी मेरा पैशन है । मुझे खुश रखती है घुमक्कडी। घुट घुट के जी नही सकता मैं। गांधी जी ने भी दक्षिण अफ्रीका से लौटते ही पूरे भारत को घूमा था। लोगों से मिले और उनके दुख दर्द को समझा था।इस बार आदिवासियों की जीवन शैली से परिचित होने गया था।जीवन एक सफर है जिसमें हिंदी बाला भी सफर है तो अंग्रेजी बाला भी। जीवन दर्शन को केवल दूसरों की जीवनियां पढकर या सुनकर ही नहीं समझा जा सकता वरन इसके लिये हमें जीवन का असली सफर करना होता है। सहयात्रियों से मिलना होता है।












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